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दुलाराम जी मेघवाल को राष्ट्रपति ने वीरता पुरस्कार से सम्मानित किया


दुलाराम मेघवाल को राष्ट्रपति ने वीरता मेडल से सम्मानित किया गया परबतसर के निकट ग्राम गांगवा निवासी दुलाराम मेघवाल कांस्टेबल केन्द्रीय रिजर्व पुलिस बल
को अदभ्य साहस के साथ नक्सलियो से मुकाबला करने पर 27 जुलाई को सीआरपीएफ के शौर्य क्लब नई दिल्ली में केन्द्रीय गृह राज्य मंत्री हंसराज गंगाराम अहीर ने राष्ट्रपति वीरता मेडल से सम्मानित किया।
एडवोकेट अशोक चौहान ने बताया कि कांस्टेबल दुल्लाराम मेघवाल ने नक्सलियो के गढ में प्रवेश कर बहादुरी पूर्वक लड़ाई लड़ी और माओवादियो के क्षति पहुॅचाने के किसी भी प्रयास का सुझबुझ के साथ जवाब दिया। 13 मार्च 2013 को 203 कोबरा वाले हमला दल 01 को नक्सली शिविरों की तलाशी करने एवं उन्हें ध्वस्त करने का कार्य सौपा गया। जहां 250-300 दुर्दांत पीएलजीए काडरों के साथ शीर्ष माओवादी नेता अरविंद व किशन दा कथित रूप से ठहरे हुए थे। हमला दल ने तत्काल उस क्षेत्र को सुरक्षित किया। जब हमला दल गांव सिलिव सकरी के बीच पहाड़ी एवं जंगल वाले क्षेत्र की तलाशी ले रहा था, तभी उन्हें जानकारी मिली कि उनके पीछे चल रही पाटी झारख्ंाड जगुआर हमला समुह 16 के उपर नक्सलियों द्वारा घात लगाकर हमला किया गया है एवं दो सैनिकों के घायल होने की जानकारी मिलने पर उन्हें अतिरिक्त बल/बचाव प्रदान करने के लिए गोलाबारी एवं धमाकों के बीच पीछे की पार्टी और चल पड़े। नक्सलियों की पोजीशन और उनकी ताकत के बारे में कोई जानकारी नहीं थी और पिछली पार्टी को अतिरिक्त सहायता पहुंचाने में बेहद कठिनाई और जीवन को जोखिम में डालने वाली स्थिति थी, लेकिन अपनी निजी सुरक्षा की परवाह किए बगैर डी.एस. कासवा उप कमांडेंट और कांस्टेबल/जीडी दुलाराम नक्सलियों की भारी गोलीबारी के बीच रेंगते हुए घात का शिकार हुई पार्टी की ओर युक्तिपूर्वक आगे बढ़े। कांस्टेबल/जीडी दुला राम ने तत्काल कुछ यूबीजीएल दागे और उसी समय कासवा और अन्य कार्मिकों ने अतिरिक्त सहायता प्रदान करने वाली पार्टी पर भारी गोलीबारी कर रहे नक्सलियों पर भारी गोलीबारी की। इस जवाबी कार्यवाई में चार नक्सलियों को वहां गिरते हुए देखा गया और कुछ क्षण के लिए नक्सलियों की ओर से गोलीबार रूक गई। सर्वाच्च स्तर के नेतृत्व और कासवा तथा कांस्टेबल/जीडी दुलाराम के अदम्य साहस एवं दृढ़ निश्चय ने नक्सलियों को पीछे हटने पर मजबूर किया। वे अपने दो घायल कार्मिकों को सुरक्षित स्थान पर ले जाने में कामयाब हो गये। झारखण्ड जगुआर के कार्मिकों की गणना करने पर यह तय हो गया कि मंगला बाखला नाम झारखंड जगुआर का एक और कांस्टेबल लापता था। तब पुन: कासवा अपने दल की सहायता से उस दिशा की ओर बढ़ गए, जहां नक्सलियों द्वारा गोलीबारी की जा रही थी। पुन: नक्सलियों ने सैन्य टुकड़ी पर गोलीबाली शुरू कर दी। अपनी जान को अत्यधिक जोखिम में डालते हुए कासवा और जीडी दुलाराम ने सर्वोच्च स्तर की बहादुरी का प्रदर्शन किया और अपने साथ कांस्टेबल मनोज बाखला का शव लाने में कामयाब हुए, जो अपने साथ 81 एमएम मोर्टार और 51 एमएम मोर्टार एचई बम लेकर चल रहे थे। इस लड़ाई में उन्होंने एक नक्सली को मार गिराया जो लगभग 25 मीटर की दूरी से गोलीबारी कर रहा था। कांस्टेबल मनोज बांखला के शव को वहां से निकाल कर सुरक्षित स्थान पर ले जाने के पश्चात, उन्होंने भारी गोलीबारी के बीच पुन: मारे गये नक्सली के शव को बरामद करने का प्रयास किया, क्योंकि उस समय शाम होने लगी थी। उन्होंने मारे गये नक्सली के शव को अगले दिन सुबह जल्दी बरामद करने के इरादे से शेष हमला दल को अपने साथ ले लिया। लगभग साढ़े आठ बजे नक्सलियों ने सभी दिशाओं से हमला दल के उपर हमला कर दिया, जिसका प्रभावी तरीके से जवाब दिया गया। लगभग साढ़े ग्यारह बजे नक्सलियों की ओर से गोलाबारी रूक गई, क्योंकि वे सुरक्षा बलों के उत्साह को कम नहीं कर सकें, जिन्होंने उनके गढ़ में प्रवेश करके बहादुरीपूर्वक लड़ाई लड़ी और माओवादियों को क्षति पहुचाने के किसी भी प्रयास का सूझबूझ के साथ जवाब दिया। जिस पर मेघवाल को राष्ट्रपति ने वीरता मेडल प्रदान कर सम्मानित किया गया।

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